सपने हैं, सपने देखने वाली आँखें हैं और उन स्वप्निल आँखों में है- स्वप्न में जीवन या जीवन में स्वप्न की उधेड़बुन। बस इसी उधेड़बुन से लड़ती और जूझती हुई ...
Monday, July 8, 2013
देवी बहुत बना लिया है
अब मनुष्य बनाने की बारी है
हम चाहते है खुद को
मनुष्य की तरह देखे जाना
मनुष्य की तरह पढ़े जाना
और मनुष्य की तरह समझे जाना।
इसीलिए हे मनु के वंशजों
हममें ईश्वरत्व की जोत मत जलाओ
बल्कि अपने में थोडा मनुष्यत्व लाओ।