Tuesday, November 11, 2014

'स्वच्छ भारत अभियान' के मायने







पिछले दिनों अख़बार मीडिया की सुर्ख़ियों का अहम हिस्सा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चलाये जा रहे 'स्वच्छ भारत अभियान' ने घेरे रखा। अपने आप में देखा जाए तो यह कोई पहला प्रयास नहीं है जब एक स्वच्छ भारत की कल्पना को साकार करने का प्रयास किया गया हो, इससे पूर्व भी 'निर्मल भारत अभियान' जैसी कई योजनाएँ और अभियान चलाये गए किन्तु उनमें पर्याप्त सफलता नहीं मिली। ऐसे में यह अभियान भी अपनी सफलता को लेकर सवालों के घेरे में है।

प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने गाँधी जयंती के अवसर पर 'स्‍वच्‍छ भारत अभियान' की शुरुआत की। इंडिया गेट से इस अभियान को औपचारिक तौर पर शुरू करने से पहले प्रधानमंत्री ने दिल्ली की वाल्‍मीकि बस्‍ती में जाकर स्वयं झाड़ू लगाई और जैव-शौचालय का उद्घाटन किया। इस अभियान के तहत 2019 में गांधी-जयंती की 150वीं वर्षगाँठ तक देश को स्‍वच्‍छ बनाने का लक्ष्‍य तय किया है। ऐसे में न केवल प्रधानमन्त्री जी ने झाड़ू लगाईं बल्कि कैबिनेट के लगभग सभी मंत्री, अन्य राजनेता सड़कों पर झाड़ू लगाते, साफ़-सफाई के लिए जनता को प्रेरित करते नज़र आए। लाखों कर्मचारियों ने भी इस महत्वपूर्ण कार्य में हाथ बंटाया। एक स्वच्छ भारत की कल्पना देश के प्रत्येक नागरिक की इच्छा है। आम जनता ने भी इस अभियान में जमकर अपनी सहभागिता दर्ज़ कराई। 

प्रधानमंत्री ने इस अभियान को शुरू करते हुए सर्वप्रथम 30,000 व्यक्तियों के साथ शपथ ली कि - न गंदगी करेंगे, न करने देंगे।" उसके बाद उन्होंने भाषण में कहा कि गांवों में कचरे से जैविक खाद तथा बिजली उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से आह्वान किया है कि वे सप्ताह में कम से कम दो घंटे सफाई के लिए दें। स्वच्छता को पर्यटन और भारत के वैश्विक हित से जोड़ते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के प्रति वैश्विक अवधारणा में व्यापक बदलाव लाने के उद्देश्य से देश के पचास शीर्ष पर्यटन-स्थलों में स्वास्थ्य और स्वच्छता का स्तर विश्वस्तरीय होना ज़रूरी है। 

इस अभियान के तहत बहुत बड़े-बड़े लक्ष्य भी रखे गए हैं। अगले एक वर्ष के भीतर विद्यालयों में एक करोड़ शौचालयों का निर्माण करना इस अभियान का सबसे महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण क़दम होगा। इसके साथ ही शहरों में ठोस कचरा प्रबंधन का इंतजाम, मैला ढोने की समस्‍या से निजात दिलाना, गाँवों में शौचालयों का निर्माण, खुले में शौच की समस्‍या को खत्‍म करना भी अगले पांच सालों के एजैंडे में है। सरकार के अनुसार स्वच्छ भारत का लक्ष्य हासिल करने के लिए हर गांव को सालाना 20 लाख रुपये दिए जाएंगे। मंत्रालय के अधिकारियों ने यह भी कहा कि सरकार ने अगले पांच साल में देश में 11.11 करोड़ शौचालय बनाने के लिए 1,34,000 करोड़ रुपये खर्च करने की घोषणा की है। यह फौरी तौर पर किए गए वादे हैं जो इस अभियान के साथ किए गए हैं। यहाँ पर प्रश्न यही है कि ये केवल कोरे आश्वासन या सब्ज-बाग़ साबित होंगे या इन्हें अमलीजामा पहनाया जाएगा। यह काबिले-गौर रहेगा कि केंद्र सरकार भारत की लगभग 50 फीसद आबादी की उस पीड़ा को कितना समझती है जिनके पास शौचालय तक की सुविधा नहीं है जिन्हे विवश होकर खुले में आश्रय लेना पड़ता है यह खुले में जाना महिलाओं के साथ अनेक अपराधों का कारण बनता है। देखना यह भी होगा कि क्या यह सत्तापक्ष का किया गया एक स्टंट भर था जिसमें झाड़ू, नेता, मीडिया, कैमरा, एक्शन सबकुछ था। चकाचक सफ़ेद कुरता पहनकर मीडिया को साथ लेकर साफ़-सुथरी सड़कों पर झाड़ू लगाना एक बात है और वास्तविक गन्दगी में उतरकर उसे साफ़ करना नितांत भिन्न। यह सब कुछ भविष्य के गर्भ में है कि सरकार इस अभियान को लेकर कितनी सजग और गंभीर है, समय ही इसका निर्णय भी करेगा। 



इस अभियान की महत्वपूर्ण बात यह है कि यह अभियान गाँधीजी से प्रेरणा लेते हुए दो अक्टूबर से ही प्रारम्भ किया गया चूँकि गाँधीजी ने एक स्वच्छ भारत का सपना देखा था वे इसके लिए प्रयासरत भी रहे। उन्होंने बचपन में ही भारतीयों में स्वच्छता के प्रति उदासीनता की कमी को महसूस कर लिया था। उन्होनें किसी भी सभ्य और विकसित मानव समाज के लिए स्वच्छता के उच्च मानदंड की आवश्यकता को समझा। अपने दक्षिण अफ्रीका के दिनों से लेकर भारत तक वह अपने पूरे जीवन काल में निरंतर बिना थके स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करते रहे। गांधी जी के लिए स्वच्छता एक बहुत ही महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा था। 1895 में जब ब्रिटिश सरकार ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों और एशियाई व्यापारियों से उनके स्थानों को गंदा रखने के आधार पर भेदभाव किया था, तब से लेकर अपनी ह्त्या के एक दिन पहले 29 जनवरी 1948 तक गांधी जी लगातार सफाई रखने पर जोर देते रहे। उन्होनें एक जगह लिखा भी कि -"हमें स्वच्छता और सफाई का मूल्य पता होना चाहिए ....गन्दगी को हमें अपने बीच से हटाना होगा… क्या स्वच्छता स्वयं ईनाम नहीं है?" 


गन्दगी के प्रति लापरवाह देश के रूप में भारत की छवि हमारे लिए एक दाग़ है और यह दाग़ केवल तभी मिटेगा जब सार्वजनिक सफाई को लेकर लोग अपनी भीतरी गंदगी को दूर करेंगे। गांधीजी के इस स्वच्छता भाव के कई मायने थे एक ओर साफ़-सुथरा-स्वस्थ भारत है तो दूसरी ओर साफ़-सफाई के महत्व से मेहनतकश लोगों के श्रम को सम्मान व पहचान दिलाना। इस दृष्टि से देखे तो भारत में स्वच्छता का परिदृश्य अभी भी निराशाजनक ही है। सदियों से सफाई के काम में लगे लोगों, मैला ढोने वाले लोगों को गरिमा प्रदान करने की कोशिश अभी भी फलीभूत नहीं हो पा रही है। हमने गांधी को एक बार फिर से विफल ही किया है। आजादी के बाद से हमने गाँधी के अभियान को योजनाओं में बदल दिया। योजनाओं को लक्ष्यों, ढांचों और संख्याओं तक सीमित कर दिया गया। पर मुद्दों तक नहीं पहुँचा सके। सही मायने में यदि यह अभियान अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर लेता है तो वही गाँधी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 



इस अभियान को केंद्र सरकार यदि ठीक प्रकार से क्रियान्वित करती है तो यह अभियान भारत के लिए शुक्ल पक्ष के समान रहेगा, इसके दूरगामी परिणाम भारत के विकास एवं प्रगति के लिए सकारात्मक रहेंगे। इस स्तर के अभियान की सफलता के लिए यह ज़रूरी है कि घर, दफ्तर, स्कूल, कालेज, अस्पताल, सड़कें, गली-मोहल्ला, बाजार, रेलवे स्टेशन, बस अड्डा, नदी, तालाब, पार्क और अन्य सार्वजनिक स्थलों की साफ-सफाई के लिए व्यापक जागरूकता पैदा की जाए और भागीदारी सुनिश्चित की जाए। भारतीय गन्दगी जो पर्यटकों के लिए विकर्षण का केंद्र बनती है, यदि उसमें सुधार किया जाता है तो सीधे तौर पर पर्यटन बढ़ेगा। साथ ही भारत में गन्दगी से होने वाली बीमारियां की रोकथाम होगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार गन्दगी से उपजी बीमारियों के कारण प्रत्येक भारतीय को साल में औसत 6500 रूपए का नुक्सान उठाना पड़ता है जिसकी सबसे अधिक मार निम्नवर्ग पर पड़ती है। डॉक्टरों का भी यही कहना है कि स्वच्छता के प्रति सचेत होकर मरीज़ों की संख्या 50 फीसद तक कम की जा सकती है। इस गन्दगी-उन्मूलन एवं स्वच्छता को विस्तृत स्तर पर लेकर जाने की ज़रूरत है जिसमें नगरपालिका को अपनी कूड़ा-निस्तारण व्यवस्था को दुरुस्त करना होगा। सरकार को नगरपालिका को वित्तीय सहायता प्रदान करनी होगी, जिससे कूड़े के रीसाइकिल के साधन जुटाए जा सके। बजबजाती नालियों और सीवेज सिस्टम को ठीक किया जा सके, जगह-जगह घूमते मवेशियों की व्यवस्था की जा सके, कूड़ा बीनने वालों के सम्मान एवं कल्याण के कार्य किए जा सके, इन बुनियादी व्यवस्थाओं को दुरुस्त करके ही सडकों पर झाड़ू लगाना सफल व् सार्थक होगा। विश्व बैंक के एक आँकड़ें के अनुसार अगर साफ़-सफाई पर एक डॉलर खर्च किया जाए तो स्वास्थ्य और शिक्षा आदि पर खर्च होने वाले नौ डॉलर बचाए जा सकते हैं। बहरहाल अभी के लिए आवश्यक है कि केंद्र सरकार इसके लिए भरसक प्रयास करे, साधन जुटाए, और जनता बिना किसी पूर्वग्रह से ग्रसित हुए सरकार को समय दें तथा यथासंभव इस कार्य में अपना सहयोग दे।