Tuesday, May 28, 2019

नए भारत में हमेशा की तरह अब कोई सरोकार नहीं


पुरुषोत्तम अग्रवाल लिखते हैं, 'बीजेपी की इस चौंका देने वाली जीत का सबसे महत्वपूर्ण एकमात्र कारण राष्ट्रीय दृष्टिकोण का प्रकटीकरण, गर्व का एक साझा सपना, मुखर भारत है ।' 

भोपाल से विजयी भाजपा प्रत्याशी प्रज्ञा ठाकुर मतगणना के अंतिम दौर में जब केंद्र का दौरा करने पहुँची, तब उन्हें ’गोडसे ज़िंदाबाद’ का नारा लगाकर बधाई दी गई । एक "देशभक्त" के रूप में गोडसे की तसदीक़ करने से प्रधानमंत्री मोदी प्रकट रूप से इतने परेशान हो गए कि वे प्रज्ञा ठाकुर को अपने दिल में कभी माफ नहीं करेंगे । ऊपर से नीचे तक सही धूम और सही प्रक्रियाएं थीं; और फिर गांधी की हत्या के लिए फांसी पर लटकाए गए व्यक्ति का पुरजोर बखान था । 

यह सांकेतिक संचार की कीमियागिरी है जो संघ परिवार के भीतर एक साझे दृष्टिकोण के कारण इतने प्रभावी रूप से कार्य कर रही है । मोदी और शाह नए युग की कॉर्पोरेट दक्षता और संघ परिवार में पाई जाने वाली मानसिकता एवं तंत्र की आक्रामकता लेकर आए । यह अनायास नहीं था कि मोदी ने अपना पहला कार्यकाल "पांच पीढ़ियों के बलिदान" की आभार स्वीकृति के साथ शुरू किया । यह वर्ष 2014 के जनादेश में आरएसएस (1925 में स्थापित) के योगदान के लिए एक उपयुक्त श्रद्धांजलि थी; उदासीन कार्य प्रदर्शन के बावज़ूद इसे और अधिक प्रभावी रूप से दोहराया गया है । 

मोदी के विरोधी पक्ष एवं आलोचक 2014 के जनादेश के दीर्घकालिक अर्थ को समझने में पूरी तरह विफल रहे । चाहे वह संस्थागत तोड़फोड़ हो या इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के माध्यम से वैचारिक युद्ध हो, नेहरू की छवि को धूमिल करना हो, सबकुछ सावधानीपूर्वक तैयार की गई रणनीति का हिस्सा था । यह महज व्यवस्था परिवर्तन नहीं था, यह "पांच पीढ़ियों के निरंतर कार्य" तथा भारत के वैकल्पिक विचार को मजबूत करने के लिए राज्यतंत्र उपयोग करने की परिणति थी । यह हमेशा की तरह एक पेशा भी नहीं था । यह "पूरी राजनीति के हिंदुकरण" की यात्रा में एक महत्वपूर्ण चरण था - जिसे सावरकर ने स्थापित किया था । हम यहाँ स्वयं को याद दिलाते हैं कि सावरकर के लिए, "अस्पष्ट, सीमित, सांप्रदायिक शब्द हिंदू धर्म" से "हिंदुत्व समरूप नहीं है"। सावरकर ने जो चाहा, तथा संघ परिवार जो प्रयास कर रहा है, वह लोगों को ज़्यादा धार्मिक नहीं, बल्कि उन्हें हिंदू राष्ट्रवादी बना रहा है । 

भाजपा के मुखर विरोध के बावजूद, उनके विरोधियों से इस महत्वपूर्ण बिंदु को याद रखने में चूक हुई, अन्यथा वे अपने संकीर्ण (भले ही उचित) हितों और विचारों से ऊपर उठ गए होते, तथा मतदान से पूर्व एक वास्तविक गठबंधन बनाते, जो महज भाजपा को हराने के उद्देश्य से नहीं बल्कि भारत के लोकतांत्रिक, समावेशी विचार पर जोर देने के उद्देश्य के साथ बनाया जाता । 


भाजपा की इस चौंका देने वाली जीत का सबसे महत्वपूर्ण एकमात्र कारण राष्ट्रीय दृष्टिकोण का प्रकटीकरण, गर्व का एक साझा सपना, मुखर भारत, तथा साथ ही उनकी सफलता (टीवी न्यूज़ रूम में योग्य लोगों की उत्साहपूर्ण मदद से) विपक्ष के प्रस्तुतीकरण के कारण है, विशेष रूप से कांग्रेस को एक उदासीन विपक्ष के रूप में प्रस्तुत करना, जैसे कि वह भारतीय राष्ट्रवाद पर गर्व करने की पक्षधर नहीं है । हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सभी समुदायों में अतीत के साथ एक भावनात्मक जुड़ाव एवं भविष्य के प्रति चिंता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । इस देशभक्ति की भावना को या तो एक प्रतिगामी, कट्टरतापूर्ण अति-राष्ट्रवाद या लोकतांत्रिक, समावेशी राष्ट्रवाद के रूप में व्यक्त किया जा सकता है । राष्ट्रवाद के विभिन्न पहलुओं पर अकादमिक बहस चल सकती है, लेकिन रोजमर्रा की राजनीति में, राष्ट्रवाद की ताक़त को शायद ही नकारा जा सकता है । 


हमारा राष्ट्रीय आंदोलन इस मायने में अनूठा था कि इसने देशभक्ति की भावना और उपनिवेशवाद विरोधी भावना को एक लोकतांत्रिक, समावेशी राष्ट्रवाद के रूप में चित्रित किया । दादा धर्माधिकारी के शब्दों में कहें तो, यह मानवनिष्ठा भारतीयता अर्थात् सद्य भारतीय राष्ट्रवाद था । सभी मतों की प्रतिक्रियावादी ताकतों ने राष्ट्रवाद के इस संस्करण का विरोध किया है, और यही कारण है कि, नेहरू और अन्य राष्ट्रवादी नेताओं ने अपने राष्ट्रवाद से सांप्रदायिकता- हिंदू, मुस्लिम या कोई अन्य का प्रतिवाद किया; राष्ट्रवाद से दूर हटने के बजाय, उन्होने लोगों को एक साझे दृष्टिकोण के रूप में मानवनिष्ठा भारतीयता के विचार पर लाने के लिए सफलतापूर्वक प्रयास किया । 


इस चुनाव में साढ़े आठ करोड़ प्रथम बार मतदान करने वाले मतदाता थे । युवा महिलाओं एवं पुरुषों के लिए देशभक्ति की भावना को कौन चित्रित कर रहा था ? कौन देशभक्ति भावना के हिंदुत्व संस्करण का विकल्प प्रस्तुत कर रहा था ? इन युवा भारतीयों को एक ऐसी शिक्षा प्रणाली में दीक्षित किया गया है जो 'कौशल और नौकरियों' को अन्य चीजों से ऊपर रखती है । उनकी ऐतिहासिक और सामाजिक समझ मुख्य रूप से व्हाट्सएप विश्वविद्यालय से प्रवाहित होती है, जो स्वाभाविक रूप से भाजपा के राष्ट्रवाद के संस्करण को देशभक्ति की भावना का एकमात्र द्वार समझती है । 


यह कांग्रेस थी, जिसने अपनी अदूरदर्शिता के कारण शिक्षा को मानव संसाधन प्रबंधन में बदल दिया, जिसने शिक्षा प्रणाली और प्रशासन के सभी स्तरों पर मानविकी और लिबरल आर्ट्स को हाशिए पर डाल दिया । जब लाखों युवा भाषा, इतिहास और समाज की मौलिक भावना से व्यवस्थित रूप से ही वंचित हैं, तो ऐसे में गोडसे के ज़ोरदार बखान के सिवा आप और क्या उम्मीद कर सकते हैं ? 


( लेखक एक प्रसिद्ध लेखक एवं विद्वान हैं । व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं ) 


-आउटलुक से अनुवाद