Monday, September 28, 2015

ट्रांसक्शन कम्पलीट


इस वीडियो को हिलेरियस कह लो, दहाड़ मार-मार, पेट पकड़-पकड़ हँस लो। फेसबुक पर हैजे की तरह वायरल कर दो.! क्या ही फर्क़ पड़ता है। विवाह संस्था पर ऊँगली उठाना या उसमें ऊँगली घुसाना किसी को रास नहीं आता, उन्हें ही कौन सा कोई ख़ास फर्क़ पड़ता है। लड़की वाले हों या लड़के वाले, वे अपना 'ट्रांसक्शन ऑफ रिचुअल्स' सदियों से बखूबी कर रहे हैं। पर सच तो यही है कि फूलदान पर कोहनी टिकाई हुई तस्वीरों और कुंडलियों के एक्सचेंज का ज़माना भी पीछे छूटा, डोरबेल बजते ही पहला बेहयाई से भरा हुआ सवाल तपाक से लड़की वालों पर फेंक दिया जाता है कि 'आपका बजट क्या है?' लड़की वाला भी हैसियत के हिसाब से कोई कन्धे चौडे करके तो कोई कंधे बिचका कर जवाब देता ही है। लड़के वाले साथ ही यह भी ताक़ीद कर देते हैं कि हमने आजतक अपने बेटे पर इतना पैसा इन्वेस्ट किया है और उसकी वसूली का बिल तुम्हारे नाम पर फटा है और इस लम्बी से भी ज्यादा लम्बी परम्परा उर्फ़ विधान से समझौता यह सोच कर कर लिया जाता है कि कोई बात नहीं जितना बेटी के ब्याह में लगा रहे हैं उससे ज्यादा बेटे के में कमा लेंगे। बेटियाँ उर्फ़ लाइबिलिटीस क्या है कैसी है कितनी पढ़ी है कहाँ टॉप किया है कितने गोल्ड मेडल जीते हैं - 'नोबडी गिव्स ए शिट'.... 15 मिनट में ये सोलमेट बनाने की प्रक्रिया बड़ी मानीख़ेज़ होती जा रही है। बात तो ये है कि उन 15 मिनट में भी 'व्हॉट अबाउट योर हाइमेन?' पूछना नहीं भूला जाता। यह शुचिता।!! क्या विवाह 'सेक्स' को वैधानिकता देने का एक माध्यम भर बन कर नहीं रह गया है और यह सब कुछ लेन-देन तय हो जाने के बाद में ये एक्सप्रेस ऑफ़ खुशियाँ, शादी-ब्याह के ये बेसिर-पैर के हुड़दंग और रमझोल। बाप रे..... ! 


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