सपने हैं, सपने देखने वाली आँखें हैं और उन स्वप्निल आँखों में है- स्वप्न में जीवन या जीवन में स्वप्न की उधेड़बुन। बस इसी उधेड़बुन से लड़ती और जूझती हुई ...
Wednesday, July 3, 2013
साहचर्य
मेरा प्रेम आवश्यकता और विकल्प का प्रेम नहीं है
पर तुम नहीं समझते
पुरुष का स्त्री को ये न समझना ही
स्त्री-पुरुष के साहचर्य का निर्धारण करता है
क्योंकि जिस दिन मुझे समझ जाओगे
साहचर्य की इति हो जाएगी
तो अच्छा है
इसी मँझधार में हम दोनों
फंसे रहे
समझकर भी नासमझ यूँ ही
बने रहे।
खोज..
किताबों के बीच
पन्नों के बीच
पंक्तियों के बीच
शब्दों के बीच
बीत रही है कुछ ज़िंदगियाँ
जिनमें
वह खोजती है
कोई चेहरा
कोई मुस्कान
कोई बात
कोई याद
और
कोई इंसान।
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