Wednesday, November 26, 2014

इमाम या निज़ाम



दिल्ली स्थित देश की सबसे बड़ी ऐतिहासिक जामा मस्जिद के शाही इमाम सैय्यद अहमद बुखारी ने अपने बेटे के नायब इमाम दस्तारबंदी समारोह में देश के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को आमंत्रित ना कर पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री नवाज़ शरीफ़ को निमंत्रण भेजा। इमाम सैय्यद बुखारी का यह आचरण उनकी राष्ट्रनिष्ठा पर गंभीर सवाल खड़े करता है। जहाँ इमाम के काम और सरोकार मज़हबी मामलों तक सीमित होने चाहिए वहीँ इमाम के द्वारा धर्म का ऐसा राजनीतिकरण करना कि स्वयं को इमाम कम निज़ाम होने का दावा अधिक प्रस्तुत करे तो यह उनकी सदाशयता पर सवालिया निशान लगाता है। हालाँकि इमाम ने अपने इस निर्णय को लेकर यह दलील पेश की है कि- "हमने शाबान की दस्तारबंदी के लिए देश और दुनिया में अपने सभी जानने वाले लोगों को न्यौता भेजा है। इसमें नेताओं, धर्मगुरुओं और कई दूसरे क्षेत्रों के लोगों को दावत दी गई है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ साहब को मैंने अपने पारिवारिक रिश्ते की हैसियत से न्यौता दिया है।" किन्तु उनकी यह दलील बेहद बेमानी नज़र आती है चूँकि जामा मस्जिद उनकी कोई पारिवारिक संपत्ति नहीं है जिसे वे व्यक्तिगत उत्सव के रूप में मनाए। इसके इतर इमाम के विरोध में न्यायालय में तीन जनहित याचिकाएं दायर की गई है जिनमें कहा गया है कि जामा मस्जिद को भारतीय पुरातत्व विभाग ने संरक्षित स्मारक घोषित कर रखा है साथ ही जामा मस्जिद दिल्ली वक्फ बोर्ड की संपत्ति है और मौलाना सैयद अहमद बुखारी (शाही इमाम) अपने बेटे को नायब इमाम नहीं नियुक्त कर सकते। इन याचिकाओं के अनुसार, यह जानते हुए कि इमाम वक्फ बोर्ड के कर्मचारी हैं और इमाम की नियुक्ति का अधिकार बोर्ड के पास है, बुखारी ने अपने 19 वर्षीय बेटे को नायब इमाम बना दिया और इसके लिए दस्तारबंदी कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है, जो कि पूरी तरह गैर इस्लामिक है।

जामा मस्जिद का निर्माण मुगल शासक शाहजहाँ ने कराया था। इस मस्जिद की देख-रेख और मज़हबी कार्यों को संपन्न कराने के लिए शाहजहाँ ने 1656 ई. में उज्बेकिस्तान के बुखारा से सैय्यद अब्दुल ग़फ़ूर शाह बुखारी को बुलाकर उन्हें जामा मस्जिद का पहला इमाम बनाया था। तब से जामा मस्जिद की इमामत इसी परिवार के पास है। आजकल के ज़माने में जब राजे-रजवाड़े नहीं रहे, जामा मस्जिद मुगलिया राजशाही को ढो रहा है। जामा मस्जिद मज़हबी कामों की जगह राजनीति में अनावश्यक दख़लअंदाज़ी भी करता आया है, यह शाही इमाम की अराजकता और एक प्रकार से सत्ता का दुरुपयोग है। शाही इमाम का देश के प्रधानमन्त्री के प्रति अशोभनीय बयान- "पाकिस्तान का प्रधानमंत्री भारत के प्रधानमन्त्री से ज्यादा पसंद है। भारत के मुसलमान नरेंद्र मोदी को अपना नेता नहीं मानते. वह भले ही प्रधानमन्त्री चुने गए हो, किन्तु भारत के मुसलमानों ने उन्हें स्वीकार नहीं किया।" वास्तव में बुखारी को पूरे भारतीय मुस्लिम समुदाय का रहनुमा होने का दम्भ प्रकट करता है। इस बयान से भारतीय मुस्लिमों के सन्दर्भ में आम जनमानस की धारणा पर बहुत बुरा असर पड़ता है। यह ज्यादा चिंताजनक बात है। बुखारी के लिए यह एक खबर हो सकती है, लेकिन यह सच है कि भारतीय मुस्लिम खुद को भारत के प्रधानमंत्री से जोड़ते है, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से नहीं।

यहाँ यह भी ग़ौरतलब है कि ऐसे समय में जब पाकिस्तान बिना किसी उकसावे के संघर्ष-विराम का उल्लंघन कर रहा हो, सीमा पर गोलीबारी कर निरपराध नागरिकों की हत्या कर रहा हो और आतंकवाद को पोषित कर भारत को निरंतर खंडित करने की साज़िश में लगा हुआ हो और तब इमाम बुखारी की पक्षधरता भारत के प्रधानमन्त्री की अपेक्षा पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री के प्रति नज़र आए तो उन्हें अपने राष्ट्रप्रेम और दायित्व के प्रति पुनःविचार करना होगा। इससे अलग भारतीय प्रबुद्ध मुस्लिम वर्ग के द्वारा इमाम बुखारी के विरुद्ध दी गई प्रतिक्रियाएँ राष्ट्रीय पटल पर एक शुभ संकेत हैं जो भारत की एक मज़बूत छवि को प्रकट करते है जो इमाम बुखारी के बयान को किसी भी रूप में धर्मगत प्रतिनिधित्व के रूप में खारिज़ करते हैं।

बहरहाल 20 नवम्बर की सुनवाई में दिल्ली हाई कोर्ट ने बुखारी को करार झटका देते हुए कहा कि उनके द्वारा आयोजित दस्तारबंदी समारोह की कानूनी मान्यता नहीं होगी। इसे आयोजित करने के लिए हाईकोर्ट से, केंद्र सरकार से, एएसआई से और दिल्ली पुलिस से स्वीकृति नहीं ली गई है। दिल्ली वक्फ़ बोर्ड ने अदालत में कहा कि इस मामले में जल्द ही उच्च अधिकारियों की बैठक की जायेगी और यह तय किया जाएगा कि बुखारी ने जो किया है उसके लिए उनके विरूद्ध क्या कार्रवाई की जानी चाहिए। यहाँ एक प्रश्न यह भी उठता है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जामा मस्जिद के इमाम की नियुक्ति राजशाही अंदाज़ में क्यों की जाए। भारतीय मुसलमानों को यह निर्णय लेने का स्वतंत्र अधिकार होना ही चाहिए कि कौन अच्छा इमाम हो सकता है और किसे इस पद पर होना चाहिए।




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