सपने हैं, सपने देखने वाली आँखें हैं और उन स्वप्निल आँखों में है- स्वप्न में जीवन या जीवन में स्वप्न की उधेड़बुन। बस इसी उधेड़बुन से लड़ती और जूझती हुई ...
Sunday, September 27, 2015
2013
चलते चलते थक चुके हैं चुभती धूप गर्म हवा के थपेड़े दूर दूर तक कोई दरख़्त नहीं छाँव का निशाँ नहीं ज़मीन से निकलते भभके से तलवे जल रहे हैं फिर भी चले जा रहे हैं जाने किस मृग मरीचिका के सहारे..!
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