Sunday, September 27, 2015

2013



चलते चलते थक चुके हैं
चुभती धूप
गर्म हवा के थपेड़े
दूर दूर तक कोई दरख़्त नहीं
छाँव का निशाँ नहीं
ज़मीन से निकलते भभके से तलवे जल रहे हैं
फिर भी चले जा रहे हैं
जाने किस मृग मरीचिका के सहारे..!

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