स्मृतियाँ
कभी बनती हैं
कभी सँवरती हैं
कभी निखरती हैं
और कभी
धूमिल हो मिट जाती हैं
स्मृतियाँ
कभी हँसाती हैं
कभी रुलाती हैं
कभी भरमाती हैं
और कभी
जड़वत-सा कर जाती हैं
स्मृतियाँ
कभी सुनाती हैं
कभी बहकाती हैं
कभी समझाती हैं
और कभी
दिलासा-सा दे जाती हैं
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