Tuesday, May 9, 2017

स्मृतियाँ 
कभी बनती हैं  
कभी सँवरती हैं
कभी निखरती हैं 
और कभी 
धूमिल हो मिट जाती हैं 


स्मृतियाँ 
कभी हँसाती हैं 
कभी रुलाती हैं
कभी भरमाती हैं 
और कभी
जड़वत-सा कर जाती हैं 

  
स्मृतियाँ
कभी सुनाती हैं 
कभी बहकाती हैं 
कभी समझाती हैं 
और कभी 
दिलासा-सा दे जाती हैं   

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