Wednesday, May 10, 2017

सितारे मिटा नहीं करते…



कहा जाता है कि कला उन्हीं की मदद करती है जो उसकी मदद माँगते हैं। वह गूंगे के लिए गूंगी है, उसी से बोलती है जो उससे सवाल करते हैं। अभी हाल ही में प्रसिद्द कथक नृत्यांगना सितारा देवी का निधन हो गया जिन्होंने अपना पूरा जीवन संघर्षों से पार पाते हुए कला के लिए जिया। उनका पहला संघर्ष अपनी शारीरिक बनावट से ही शुरू हो गया जिसमें उन्हें बचपन में मुँह टेढ़ा होने के कारण लम्बे समय तक माता-पिता के प्रेम से वंचित दायी के पास रखा गया पर समय के बीतते सितारा देवी ने इस प्रकृति प्रदत्त विकृति को अपने नृत्य-भाव-भंगिमाओं में पिरो दिया। यह वह दौर था जब नाटकों, गीतों और यहाँ तक की नई नवेली फिल्मी दुनिया में भी पुरूष ही महिलाओं के परिधानों को पहनकर उनकी भूमिका अदा करते थे, तब युवा भारतीय नृत्यांगना सितारा देवी ने इस रूढिवादी परंपरा को तोडा। भले ही सितारा देवी आज हमारे बीच में नहीं हैं लेकिन उनकी पहचान, उनकी कला और उनकी ताल हमेशा लोगों के ज़ेहन में जिंदा रहेगी।


उस समय कोई यह सोच भी नहीं सकता था कि एक शरीफ घराने की लड़की नाच-गाना सीखे। सितारा देवी के पिता आचार्य सुखदेव ने यह क्रांतिकारी कदम उठाया और पहली बार परिवार की परंपरा तोड़ी। वे स्वयं नृत्य के साथ-साथ गायन से भी ज़ुडे थे। वे नृत्य नाटिकाएँ लिखा करते थे। उन्हें हमेशा यह परेशानी होती थी कि नृत्य किससे करवाएँ क्योंकि इस तरह के नृत्य उस समय लड़के ही करते थे। इसलिए अपनी नृत्य नाटिकाओं में वास्तविकता लाने के लिए उन्होंने घर की बेटियों को नृत्य सिखाना शुरू किया। उनके इस फैसले पर पूरे परिवार ने कड़ा विरोध किया पर वे अपने निर्णय पर अडिग रहे। इस तरह सितारा देवी, उनकी बहनें और भाई नृत्य सीखने लगे। किसी रूढ़ी को तोड़कर कला साधना में लीन होने का इनाम उन्हें बिरादरी के बहिष्कार के रूप में मिला। समाज में बहिष्कृत होने के बाद भी सितारा देवी के पिता बिना विचलित हुए अपने काम में लगे रहे।

इसके बाद सितारा देवी जिनका बचपन का नाम धनलक्ष्मी था का कला के क्षेत्र से ऐसा नाता जुड़ा कि उन्होंने न केवल अपने माता-पिता को अपने हुनर से लोकप्रियता दिलाई बल्कि भारत को भी विश्वपटल पर प्रसिद्धि दिलाई। कथक में स्त्रियों के नृत्य प्रवेश तथा उसे वैश्विक परिदृश्य में लाने का श्रेय भी सितारा देवी को जाता है। बहुत छोटी उम्र में ही उन्हें फिल्म में काम करने का अवसर भी मिल गया। उन्होंने 'ऊषा हरण' , 'नगीना', 'रोटी' और 'वतन', 'अंजली' और 'मदर इंडिया' में नृत्य दृश्य किए। मदर इंडिया में उन्होंने एक होली के गाने पर लड़के का परिधान पहनकर नृत्य किया था। कुछ फिल्मों में काम करने के अलावा उन्होंने फिल्मों में कोरियोग्राफी का काम भी किया। फिल्मों में रहते हुए उन्हें महसूस हुआ कि जिस नृत्य के लिए उन्हें अपनी बिरादरी भी छोड़ना पड़ी है, वह उद्देश्य यहाँ पूरा नहीं हो पा रहा है। धीरे-धीरे उन्होंने इस नृत्य-कला को विस्तृत पटल पर शुरू किया तथा कई बॉलीवुड अभिनेत्रियों को नृत्य का प्रशिक्षण दिया। मधुबाला से लेकर माला सिन्हा, रेखा एवं काजोल को कथक नृत्य की शिक्षा दी। इन्होने आस-पास के विषयों, नृत्य-शैलियों एवं कविताओं को भी अपने नृत्य में उतारा। मात्र सोलह साल की उम्र में इन्होने तीन घंटे की एकल प्रस्तुति देकर नोबेल विजेता रबीन्द्रनाथ टैगोर को प्रभावित किया था। टैगोर ने प्रसन्न होकर इन्हें पचास रुपए और एक शॉल भेंट की लेकिन सितारा देवी ने यह सब लेने से इनकार कर केवल आशीर्वाद माँगा। रवींद्रनाथ टैगोर ने उन्हें 'नृत्य-सम्राज्ञी' ('कथक क्वीन') का सम्मान दिया। पिछले 60 दशकों से भी ज्यादा समय से वह एक विख्यात कथक नृत्यांगना हैं। बॉलीवुड में इस विधा को लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। वह संगीत नाटक अकादमी, पद्मश्री और कालिदास सम्मान जैसे प्रतिष्ठित सम्मान पा चुकी हैं किन्तु उन्होंने पद्म भूषण मिलने पर उसे यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि कथक में उन्होंने अपार योगदान दिया है इसीलिए उन्हें भारत रत्न मिलना चाहिए, हालांकि ऎसा नहीं हो पाया। इनके योगदान को याद करते हुए ठुमरी सम्राज्ञी गिरिजा देवी ने कहा- "बनारस या भारत की ही नहीं विश्व की महान नृत्यांगना थी सितारा देवी। बहुत बहादुर और संगीत की हर विधा जानती थी। संगीत के लिए ऐसे लोगों का रहना बेहद ज़रूरी है। कोई भी आयोजन हो, नृत्य, वाद्य, गायन की सभी विधाओं को वह समान रूप से इज़्ज़त देतीं, जो है। महज़ 10-15 साल में लोग भाग जाते हैं, उन्होंने तो साठ-सत्तर साल संगीत को जिया, जगा कर रखा।" 


सितारा देवी ने अपने सुदीर्घ नृत्य कार्यकाल के दौरान देश-विदेश में कई कार्यक्रमों और महोत्सवों में चकित कर देने वाले लयात्मक और ऊर्जा से भरपूर नृत्य प्रदर्शनों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। उन्होंने लंदन में प्रतिष्ठित 'रॉयल अल्बर्ट' और 'विक्टोरिया हॉल' तथा न्यूयार्क के 'कार्नेगी हॉल' में अपने नृत्य का जादू बिखेरा। यह भी उल्लेखनीय है कि सितारा देवी न सिर्फ़ कथक, बल्कि भरतनाट्यम सहित कई भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों और लोक नृत्यों में पारंगत थी। उन्होंने रूसी बैले और पश्चिम के कुछ और नृत्य भी सीखें हैं। सितारा देवी के कथक में बनारस और लखनऊ के घरानों के तत्वों का सम्मिश्रण दिखाई देता है। वह उस समय की कलाकार हैं, जब पूरी-पूरी रात कथक की महफिल जमी रहती थी। सितारा देवी एक सच्ची कलाकार थी और कलाकार कभी मरा नहीं करते वे अपनी कला के माध्यम से सदा बने रहते हैं। सितारा देवी भी अपनी कला के रूप में सितारे की तरह बुलंद हैं।

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