Tuesday, May 9, 2017

आज पीएचडी इंटरव्यू में उसका कई बार नाम पुकारा गया, पर वो नज़र नहीं आई। सहपाठियों के फ़ोन पर फ़ोन बजे, पर उसने किसी के सवाल का जवाब देना जरूरी नहीं समझा। सात साल का पुराना मोह, उसके लिए भी ये आसान थोड़े ही रहा होगा। कैंपस से कम मोह, कॉलेज से ज़्यादा, कॉलेज छूटा, मोह बना रहा, यार-दोस्त छूट गए, प्रेम भी चला गया, दुनिया ही छोड़कर, एक आसमान के नीचे बने रहने का सुख भी छीनकर ले गया,  पर पढ़ना उसका शग़ल था, सो डटी रही, बी.ए, एम. ए सब कर डाला। किसी ने अपना और किसी ने उसका सपना सौंपा था, सो मन नहीं था, फिर भी एम फिल भी कर डाला, पता है क्यों, कोई था जो न होकर भी हमेशा साथ बना रहा, रूप बदले, प्रतिरूप आए, साथ बने रहे, पीएच डी की तैयारी में भी थी। नाम के आगे डॉक्टर जो लगाना था। एक दिन पढ़ाई के सिलसिले में किसी युवक से बात कर वापसी को मुड़ते हुए, उसके कानों में एक निर्लज्ज?? ठहाका गूंजा और कुछ पंक्तियाँ कानों में ठूँस दी गई- "इससे बचकर रहना, इसने हत्या की है.!" और फिर से एक जोर का ठहाका.! वह उस दलदल हुई ज़मीन से किसी हाल क़दमों को उठा लौट गई। उसने किसी से कुछ नहीं कहा, उस रात फटकर रोई, दो दिन कोर हलक़ से न उतरा, तीसरे दिन उसे कुछ तय करते हुए अपना पढ़ाई का शग़ल याद आया, किसी का सौंपा हुआ सपना भी याद आया और फिर उसके बाद उसे किसी ने कैंपस में नहीं देखा, वह सबकुछ छोड़ गई, बस उस जगह से केवल उसे अपने साथ लेकर गई, जिसकी हत्या का आरोप उस पर लगाया गया था । पीएच डी इंटरव्यू में उसका नाम कई बार पुकारा गया, पर ..!

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