Tuesday, May 9, 2017

सत्ताईस की उम्र.! जहाँ एक अतीत और एक भविष्य आपस में मुठभेड़ को आमने-सामने नज़र आते हैं। जहाँ तक आते-आते छूटे हुए कि कसक और छूट जाने की तकलीफ भी फीकी पड़ जाती हैं। जहाँ छुटपन के बड़े सपनें बड़ेे होते-होते छोटे हो गए। जहाँ सबकी निगाहें एक ही चिंता लिए नज़र आती हैं। जहाँ अपने से जुड़ी अपनों की ख्वाहिशें, शिकायत में तब्दील होने लगी हों।  खोयी-अनमनाई सी यह उम्र अब हल्की सी आहट से जागने लगी है। जिसमें नहीं बची हो बाईस की अल्हड़ता, पर ना हो बत्तीस की थकन भी। रोमानी ख़्यालात उसे सराबोर न करते हों भले, पर उम्मीद भी चटकी न हो। जिसमें बचपन के सपने न बचे हों। सत्ताईस की उम्र पीछे मुड़कर देखना नहीं चाहती, दुनिया को कनखियों से देखती है तो आगे बढ़ना नहीं चाहती।  सब देखते हैं उसे बुढ़ाती जा रही की नज़र से, वो देखती है खुद को हाँड़ी में धीमी आँच पर पकती सी नज़र से। सत्ताईस की उम्र.! दुनिया उसे देखती हो ब्याह की नज़र से, वो देखती हो खुद को नौकरी की नज़र से। फाल्गुनी को पीछे छोड़ जिसे बेग़म अख़्तर से दोस्तियाँ भाने लगी हो।

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